ढोढर (dhodhar) गाँव, मध्य प्रदेश के रतलाम जिले के जावरा तहसील में स्थित, अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है। ढोढर, मध्य प्रदेश के रतलाम जिले में स्थित है और यह जावरा और मंदसौर के बीच एक महत्वपूर्ण स्थान है। यहाँ से रतलाम की दूरी 62 और जावरा की दूरी 17 किलोमीटर है, जिससे यह एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र बन गया है इस क्षेत्र का इतिहास कई शताब्दियों पुराना है, जिसमें रतलाम और जावरा की महत्वपूर्ण भूमिकाएँ रही हैं।
ढोढर (dhodhar) की स्थापना की कथा
कई सदियों पहले, वर्तमान ढोढर (dhodhar) गाँव के स्थान पर घने जंगल और हरे-भरे मैदान थे। इस क्षेत्र में एक शक्तिशाली राजा, राजा ध्रुवसेन, का शासन था, जिनका राज्य रतलाम और उसके आसपास के क्षेत्रों तक फैला हुआ था। रतलाम, जो मालवा क्षेत्र का एक प्रमुख नगर था, व्यापार और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र था। राजा ध्रुवसेन ने अपने राज्य की समृद्धि और सुरक्षा के लिए कई किले और नगरों की स्थापना की, जिनमें से एक ढोढर था।
राजा ध्रुवसेन का सपना
एक रात, राजा ध्रुवसेन ने एक दिव्य सपना देखा। सपने में, एक संत ने उन्हें आदेश दिया कि वे अपने राज्य के उत्तर में स्थित घने जंगल में एक नए नगर की स्थापना करें, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए समृद्धि और शांति का केंद्र बनेगा। संत ने यह भी बताया कि इस नगर का नाम ‘ढोढर (dhodhar)’ रखा जाए, जो ‘ध्रुव’ और ‘धर’ शब्दों का संयोजन है, जिसका अर्थ है ‘ध्रुव की भूमि’।
नगर की स्थापना
सपने से प्रेरित होकर, राजा ध्रुवसेन ने अपने सैनिकों और नागरिकों के साथ उस घने जंगल की ओर प्रस्थान किया। वहाँ पहुँचकर, उन्होंने संत के निर्देशानुसार नगर की स्थापना की। नगर की योजना में सुंदर मंदिर, विशाल बाजार, और सुव्यवस्थित सड़कें शामिल थीं। राजा ने विशेष रूप से कृषि और व्यापार को बढ़ावा दिया, जिससे इसे जल्द ही एक समृद्ध नगर बन गया। इस विकास में जावरा का भी महत्वपूर्ण योगदान था, जो उस समय एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र था और ढोढर (dhodhar) के साथ घनिष्ठ संबंध रखता था।
ढोढर (dhodhar) का स्वर्ण युग
इस गाव की स्थापना के बाद, यह नगर कला, संस्कृति और शिक्षा का प्रमुख केंद्र बन गया। यहाँ के विद्वानों ने अनेक ग्रंथों की रचना की, और कलाकारों ने अपनी कला से नगर को सजाया। यहाँ की समृद्धि और शांति दूर-दूर तक प्रसिद्ध हो गई, और अन्य राज्यों के लोग यहाँ बसने के लिए आने लगे। रतलाम और जावरा के साथ व्यापारिक और सांस्कृतिक संबंधों ने ढोढर (dhodhar) की समृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
वर्तमान ढोढर (dhodhar)
आज, यह गाँव अपनी प्राचीन विरासत और सांस्कृतिक धरोहर को संजोए हुए है। यहाँ के लोग अपने इतिहास पर गर्व करते हैं और राजा ध्रुवसेन की स्मृति में प्रतिवर्ष उत्सव मनाते हैं। ढोढर (dhodhar) की यह कथा हमें यह सिखाती है कि एक व्यक्ति के संकल्प और दृष्टि से एक समृद्ध समाज की स्थापना संभव है।